ट्यूबरक्लोसिस (TB) के लक्षण - TB Ke Lakshan in Hindi
टीबी के कारण- टीबी माइकोबैक्टिरियम नामक जीवाणु के संक्रमण द्वारा होता है इनकी अनेक
प्रजातियां हैं |
माइकोबैक्टिरियम ट्यूबरक्लोसिस- यह मनुष्यों में टीबी का सर्वप्रमुख कारण है । मनुष्यों में टी बी संक्रमण में अधिकांश यही जीवाणु पाया जाता है ।
माइकोबैक्टिरियम बोविस- माइकोबैक्टिरियम की यह प्रजाति पशुओ में टीबी का कारण है । मनुष्यो में इस प्रजाति का संक्रमण मुख्यतः गया, भैंस के दूध के साथ मनुष्यो में फैलता है विकसित देशों में इस प्रजाति का संक्रमण बहुत ही कम लगभग न के बराबर पाया जाता है ।
1) माइकोबैक्टिरियम अविम
2) माइकोबैक्टिरियम इन्ट्रासेलुलर
3) माइकोबैक्टिरियम मेनोमेन्स
4) माइकोबैक्टिरियम स्क्रोफुलेसम
5) माइकोबैक्टिरियम जीनोपि
6) माइकोबैक्टिरियम कंसासी
उपर्युक्त 6 माइकोबैक्टिरियम बहुत कम रोगियो में ट्यूबरक्लोसिस का कारण होते है। एक संक्रमण विशेष परिस्थितियां में होता है और मुख्यतः तब जब रोगी की स्वयं की प्रतीक्षा क्षमता बहुत कमजोर पड़ जाती है। इसलिए इन्हे परिस्थितिक संक्रमण कहते है। रोगी की प्रतीक्षा क्षमता में कमी एड्स संक्रमण या किसी अन्य रोग या कुछ विशिष्ट औषधियां को लेने के कारण होती है ।
ट्यूबरक्लोसिस (TB) के लक्षण -
1) खांसी - खांसी तपेदिक के रोगियों का प्रमुख लक्षण है। इन रोगियों में खांसी के साथ काफी मात्रा में बलगम आता है। यदि रोगी को खांसी अधिक समय तक रहे, दो से तीन सप्ताह से अधिक समय वाले खांसी के बलगम का परीक्षण अतिशीघ्र कराना चाहिए । बलगम परीक्षण में तीनो सैम्पल से अलग-अलग स्लाइडें बनाकर बाइनोकुलर सूक्षमदर्शी द्वारा उनका परीक्षण किया जाता है। इस बलगम परीक्षण के परिणाम के आधार पर टीबी के रोगियो का निदान किया जाता है। औसतन किसी क्लिनिक पर आने वाले रोगियों में से लगभग 2-3% लोगो को 3 सप्ताह से अधिक की खांसी होती है और इनमें से लगभग 10% अर्थात् यदि चिकित्सक ने किसी समय में कुल 1000 रोगी देखे है तो उनमें से 20-30 रोगियों का बलगम परीक्षण परिणाम पॉजिटिव होंगे अर्थात् इन्हे टी. बी. होगी। इस प्रकार टीबी के रोगियों में खांसी काफी महत्वपूर्ण लक्षण है ।
2) छाती में पीड़ा - टीबी के रोगियो की छाती में पीड़ा होती है। वैसे तो पीड़ा पूरी छाती में होती है । परन्तु रोग से प्रभावित छाती के अंदर यह पीड़ा तेज होती है तथा उस स्थान को दबाने या संस्पर्शन पर पीड़ा अधिक होती है। साँस लेते समय या खांसते समय पीड़ा की तीव्रता और अधिक बढ़ जाती है।
3)ज्वर - तपेदिक के रोगियों को लगातार ज्वर बना रहता है। परन्तु तपेदिक में आने वाला ज्वर अधिक तीव्र नही होते है और सामान्य भी नही होता है। रोगी को पुरे दिन ज्वर बना रहता है शाम को तापमान अपेक्षाकृत बढ़ जाता है ।
रात में पसीना आना- टीबी रोगियों को रात्रि के समय बहुत तेज पसीना आता है और इतना अधिक पसीना शाम के समय रोगी के तापमान के बढ़ने के कारण होता है।
भूख कम हो जाना - टीबी फेफड़ो में होने पर उन्हें तो प्रभावित करती ही है शरीर के अन्य अंग भी प्रभावित होते है। इसलिए इन रोगियो की भूख कम हो जाती है।
थकान व कमजोरी- भूख कम हो जाने के कारण टीबी के रोगी शरीर के लिए आवश्यक आहार नही ले पाते है। इसलिए वे थकान और कमजोरी अनुभव करते है और इन रोगियो को सुस्ती सी आती रहती है, कार्य क्षमता कम हो जाती है।
वजन कम होना- टीबी के रोगी लम्बे समय तक रोग के रहने पर भूख कम होने के कारण शरीर के लिए आवश्यक आहार नहीं ले पाते है इसलिए धीरे- धीरे उनका वजन कम होने लगता है ।
साँस फूलना- व्यक्तियों में श्वसन का कार्य फेफड़ो द्वारा होता है टीबी संक्रमण में फेफड़े सर्वाधिक प्रभवित होते है। संक्रमण के कारण फेफड़ो के कोशिकाओं में ऐसे परिवर्तन आते है कि वह भाग श्वसन कार्य नहीं कर पाता है । कभी कभी काफी कोशिका नष्ट भी हो जाते हैं। इस कारण इन रोगियों को श्वसन मार्ग में बहुत कठिनाई होती है तथा साँस फूलने लगती है ।
खांसी के साथ-साथ मुह से रक्त आना- फेफड़ो में टीबी संक्रमण होने पर उसमे अनेक गुहाएँ बन जाती है और वहा फेफड़ो की कोमल सतह नष्ट हो चुकी होती है। इन स्थानों से रक्तस्राव होने लगती है और जब रोगी को खांसी आती है तब यही रक्त खांसी के साथ मुह बाहर निकलता है ऐसी को रक्तनिष्ठीवन या बलगम में खून आना कहते है। रक्तस्राव के कारण रोगी बहुत कमजोरी का अनुभव करता है। रक्तचाप काफी गिर जाती है और हृदय गति काफी तीव्र हो जाती है काफी रक्तस्राव हो जाने पर रक्त की कमी हो जाती है रोगी पीला सा पड़ जाता है रक्त की कमी होने के कारण भी इन रोगियो की साँस फूलने लगती है।
Nice Explanation
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